फर्रुखाबाद। भीषण गर्मी, जल संकट और लू के थपेड़ों से बेहाल फर्रुखाबाद में लोग जैसे-तैसे राहत के साधन तलाश रहे हैं। खासकर बच्चे और युवा, जो गर्मियों की छुट्टियों में मौज-मस्ती के लिए स्विमिंग पूलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। लेकिन इन पूलों का आकर्षण अब जानलेवा खतरे का रूप ले चुका है। जिले में दर्जनों स्विमिंग पूल बिना किसी सरकारी अनुमति, सुरक्षा प्रबंधन या स्वच्छता मानकों के संचालित हो रहे हैं। यह स्थिति न सिर्फ कानून का मजाक है, बल्कि दर्जनों जिंदगियों को हर दिन खतरे में डाल रही है।
स्वास्थ्य विभाग और नगर निकाय के सूत्रों के अनुसार, फर्रुखाबाद में लगभग 30 स्विमिंग पूल सक्रिय हैं, जिनमें से सिर्फ एक-दो ही वैध रूप से पंजीकृत हैं। शेष बिना लाइसेंस, बगैर किसी कर भुगतान और मान्यता के धड़ल्ले से चल रहे हैं। ये पूल मुख्यतः निजी मकानों, स्कूल परिसरों, लॉज और फार्म हाउसों में बनाए गए हैं। अधिकांश स्थानों पर प्रशासन को इनकी मौजूदगी तक की सूचना नहीं है।
इन पूलों में बच्चों और किशोरों से 50 से 100 रुपये तक का शुल्क वसूला जाता है, लेकिन बदले में न तो लाइफगार्ड, न प्राथमिक चिकित्सा किट, न आपात निकास, और न ही सीसीटीवी कैमरे जैसी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह केवल एक अवैध धंधा ही नहीं, बल्कि लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी की पराकाष्ठा है।
‘निगरानी नहीं, न नीति पालन’ः प्रशासनिक खामोशी
हालांकि जिलाधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने अब इस पूरे मामले पर सख्ती दिखाई है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि स्विमिंग पूलों जैसे सार्वजनिक स्थलों पर बिना मान्यता, स्वच्छता और सुरक्षा के संचालन एक गंभीर अपराध है। जनहित में अवैध गतिविधियों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट तलब कर ली गई है और जल्द ही जांच कर सख्त कार्रवाई होगी।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब हर गली-मोहल्ले में पूल खुलेआम चल रहे थे, तो अब तक इन्हें बंद क्यों नहीं किया गया? क्या प्रशासनिक तंत्र की भूमिका केवल शिकायत पर जागने तक सीमित है?
गुजरे हादसे, आज की चेतावनी
पिछले दो वर्षों में फर्रुखाबाद जिले के कम से कम छह बच्चों और युवाओं की मौत डूबने से हो चुकी है, जिनमें अधिकतर घटनाएं गंगा नदी या बिना निगरानी वाले पूलों में हुईं। इसके बावजूद न कोई सुरक्षा दिशा-निर्देश लागू किया गया, न ही पूल संचालन पर निगरानी की गई।
जानकारों का कहना है कि सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार स्विमिंग पूल संचालन के लिए नगर निकाय की अनुमति, स्वास्थ्य विभाग से स्वच्छता प्रमाण पत्र, प्रशिक्षित लाइफगार्ड की नियुक्ति, फायर सेफ्टी एनओसी, जल की गुणवत्ता की नियमित जांच रिपोर्ट, सीसीटीवी निगरानी और आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था अनिवार्य हैं। लेकिन जिले में इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं की जा रही है।
फिलहाल, जिलाधिकारी द्वारा लिया गया संज्ञान एक सकारात्मक शुरुआत है। लेकिन यदि यह कार्रवाई कागजों में ही सिमट गई, तो आने वाले समय में किसी बड़े हादसे की जिम्मेदारी तय करना मुश्किल होगा। जरूरत है सभी पूलों की सीमित समय में निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की जाए, अवैध पूलों को सील कर बंद किया जाए, संचालकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाए, और पूल खोलने की सिंगल विंडो प्रणाली के तहत पारदर्शी प्रक्रिया शुरू की जाए।
गर्मी की तपिश से राहत की तलाश कर रहे मासूम बच्चों को राहत के नाम पर जो मिल रहा है, वह एक सुनियोजित खतरा है। स्विमिंग पूल को लेकर प्रशासनिक लापरवाही और संचालकों की लापरवाह मुनाफाखोरी अगर इसी तरह चलती रही, तो यह बात तय है कि अगली बड़ी घटना सिर्फ वक्त की बात होगी। अब प्रशासन को यह तय करना है कि वो सिर्फ चेतावनी देगा या वास्तव में कानून का पालन करवा कर लोगों की जान की हिफाजत करेगा।